Wednesday 5 April 2017

मेरा मन बावला सा....



मेरा मन बावला सा, फिरता यहाँ वहाँ...
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मेरा मन बावला सा, फिरता यहाँ वहाँ,
है कौन सी वो महफ़िल, पाऊँ सुकूं जहाँ..?
बहल ही जाता है मन, रिश्तों की ऐसी डोर...
पर नज़रें तलाशती हैं, कहाँ खो गई है माँ..?

सब कुछ हुआ है हासिल, तू भी गगन से देख़...
आबाद तेरा आँगन, बच्चों के काज नेक...
हर ओर प्रेम महके, है खुशियों का कारवां...
पर नज़रें तलाशती हैं, कहाँ खो गयी है माँ..?

तेरे हाथों से सँवर के, बिटिया दुल्हन बनी...
बेटों को ऊँगली देकर, कितना किया धनी...
रिश्ते निभाये कितने, जैसे फैला ये आसमाँ...
ये नज़रें तलाशती हैं, कहाँ खो गयी है माँ..?

मज़बूत बाजुओं से, सींचा है ये गुलशन...
अक्सर मैं देखता हूँ, उनका उदास मन...
मुस्कान ही हैं बाकी, खोया है कहकशाँ...
पर नज़रें तलाशती हैं, कहाँ खो गयी है माँ...

किस्से कहानियाँ से, अब रखता हूँ सरोकार...
हर पल तड़प रहा हूँ, फिर पाने को तेरा प्यार... 
ख़्वाबों में ही यकीं है, हक़ीक़त हुआ धुआँ...
पर नज़रें तलाशती हैं, कहाँ खो गयी है माँ..?

उलझन भरी है दुनिया, और बेरंग सा जहां...
ये नज़रें तलाशती हैं, कहाँ खो गयी है माँ..?
कहाँ खो गयी है माँ, कोई लौटा दे मेरी माँ...
ये बेटा पुकारता है, बस लौटा दे मेरी माँ...

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐💐

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