Thursday 27 April 2017

क्यूँ शर्मिन्दा हुआ जाये..?


बड़ी सिहरन सी होती है,
अगर इल्ज़ाम लग जाये...
सफाई देर तक देकर,
क्यूँ शर्मिन्दा हुआ जाये..?

ये मेरी काबिलियत है,

चुभे हर पल जो दुश्मन को...
कटघरे में खड़ा होकर,
क्यूँ मुज़रिम सा जिया जाये..?

कोई तो होगा वो इंसान,

जिसे हो कद्र मेरी भी...
चलो कुछ पल अकेले में,
संग उसके जिया जाये...

ये दुनिया मतलबी सी है,

अज़ब इसके हैं पैमाने...
घुटन का शौक जब ना हो,
क्यूँ फिर अपयश पिया जाये..?

मैं अपने राह चलता हूँ,

मगन रहता हूँ मस्ती में...
महज़ सुर्खियों की चाह में,
क्यूँ गफ़लत किया जाये...?

...©रवीन्द्र पाण्डेय💐💐

*9424142450#

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